चंदा ओ चंदा,काहे दूर खड़ा हैं

चंदा ओ चंदा,काहे दूर खड़ा हैं
तारो के साथ क्यूँ तू इठला रहा हैं
जरा आकर मेरी माँ की लोरी तो सुन
देख मेरा रोम रोम कैसे गुनगुना रहा हैं
तू भूल जायेगा अप्सराओं को भी
जब सर रखेगा माँ की गोद में कभी
शुभ रात्रि

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पलकों में कैद कुछ सपने हैं,